Thursday, 4 August 2022

निर्मला मुंशी प्रेमचंद

 निर्मला मुंशी प्रेमचंद



निर्मला के लेखक का नाम क्या है?

निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ।


निर्मला उपन्यास में कौन कौन सी समस्याओं को उजागर किया गया है?

निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है।


निर्मला उपन्यास का नायक कौन है?

इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है।


निर्मला उपन्यास के प्रमुख समस्या क्या है?

निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है।


निर्मला उपन्यास का प्रकाशन वर्ष क्या है?

प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'निर्मला' उपन्यास, जिसका निर्माण काल 1923 ई. और प्रकाशन का समय 1927 ई. है। प्रेमचन्द्र की गणना हिन्दी के निर्माताओं में की जाती है।


निर्मला की छोटी बहन का नाम क्या है?

निर्मला की छोटी बहन का नाम निर्मला है। निर्मला को अपनी छोटी बहन कृष्णा के विवाह की चिंता सताती है। 


निर्मला उपन्यास सबसे पहले किस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था?

इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ।


निर्मला के पिता उदयभानु लाल व्यवसाय से क्या थे?

बाबू उदयभानुलाल थे तो वकील, पर संचय करना न जानते थे। दहेज उनके सामने कठिन समस्या थी। इसलिए जब वर के पिता ने स्वयं कह दिया कि मुझे दहेज की परवाह नहीं, तो मानों उन्हें आंखें मिल गई।

Tuesday, 2 August 2022

ग़बन मुंशी प्रेमचंद

 ग़बन मुंशी प्रेमचंद


ग़बन मुंशी प्रेमचंद


गबन उपन्यास का उद्देश्य क्या है?

ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'। ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया।


गबन उपन्यास की समस्या क्या है समझाइए?

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गबन उपन्यास एक यथार्थवादी रचना हैं. इसमें भारतीय समाज की प्रमुख समस्या नारी के आभूषण प्रेम एवं नवयुवकों की मौज मस्ती व विलासिता की प्रवृत्ति को चित्रित किया गया हैं.


गबन उपन्यास की रचना कब हुई थी?

इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ।


गबन उपन्यास के नायक का क्या नाम है?

रमानाथ गबन उपन्यास का प्रमुख पुरूष पात्र है। उपन्यास का नायक होने के साथ-साथ वह वर्तमान युग के युवा वर्ग का प्रतिनिधि है।


गबन उपन्यास में गठन कौन करता है?

हम गबन के पात्रों के बारे में जानते हैं जालपा और रामनाथ की इस कहानी को प्रेमचंद जी ने इस पात्रों के जरिये कहानी को गति दी हैं.

पुरुष पात्र- रामनाथ, देवीदीन, रमेश बाबू दीनदयाल, इन्दुभूषण, मणिभूषण.

स्त्री पात्र- जालपा, रतन, जग्गो, जोहरा, रामेश्वरी, जानेश्वरी


गबन उपन्यास का रचना काल क्या लिखिए?

इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ।


गबन उपन्यास की नायिका जालपा के पिता का नाम क्या है?

कथानक में अनावश्यक घटनाओं और विस्तार का अभाव है। प्रयाग के छोटे से गाँव के जमींदार के मुख़्तार महाशय दीनदयाल और मानकी की इकलौती पुत्री जालपा को बचपन से ही आभूषणों, विशेषत: चन्द्रहार की लालसा लग गयी थी।नायिका जालपा के पिता का नाम दीनदयाल है।


गबन का मतलब क्या होता है?

गबन का अर्थ दूसरे के धन को अनुचित तरीके से हड़पना होता है । ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'। ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया।


गबन उपन्यास में रमानाथ घर से भागकर कौन से शहर गया?

इसे सुनेंरोकेंगबन उपन्यास में रमानाथ घर से भागकर कलकत्ता शहर गया था, जिसे अब कोलकता का नाम से जाना जाता है। 'गबन' उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद ने मध्यम वर्गीय समाज से संबंधित रखने वाली समस्याओं जैसे दिखावा, आडंबर, विधवा विवाह, दहेज समस्या, आभूषणों के प्रति लगाव आदि जैसी समस्याओं का यथार्थ रूप से चित्रण किया है


प्रेमचंद के उपन्यास गबन में मुख्यतः समाज का कौन सा वर्ग उभरा है?

गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है।

Sunday, 31 July 2022

मुंशी प्रेमचंद की गोदान पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

 गोदान मुंशी प्रेमचंद

गोदान मुंशी प्रेमचंद


गोदान की कहानी क्या है? 

'गोदान' होरी की कहानी है। उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है किन्तु उसे इसका फल नहीं मिलता फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। अंततः वह तप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है।


गोदान उपन्यास का महत्व क्या है?

गोदान हिंदी उपन्‍यास के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है।


होरी का गोदान हो गया का मतलब क्या है?

गोदान नामक उपन्यास में होरी नामक पात्र था। उस पात्र की तीव्र इच्छा थी कि वह अपने घर में गाय पाले। परन्तु जब वह मरता है, तो उसके गोदान के लिए तक उसकी पत्नी के पास पैसे नहीं होते हैं। लेखक ने उसी पात्र की खराब दशा का वर्णन इन शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है।


गोदान उपन्यास में गाय का क्या नाम है?

होरी गाय खरीदता है, सारा गांव देखने आता है। शोभा उदासीन है, लेकिन हीरा ईष्र्या से भर उठता है। वह गाय को विष देता है। होरी उसे देखता है, लेकिन पुलिस में उसकी रिपोर्ट नहीं करता।


गोदान की प्रमुख समस्या क्या है?

विवाह की समस्याएं गोदान की एक मुख्य समस्या है जिसका चित्रण गोदान में हुआ है। दहेज के कारण विवाह होने में बाधा , बाल विवाह तथा विधवा की समस्या अनमेल विवाह या वृद्ध विवाह का उदहारण इस उपन्यास में देखा जा सकता है। होरी की बेटी सोना के विवाह में दहेज की समस्या के कारण बढ़ा बनता है।


गोदान उपन्यास का मुख्य पात्र कौन है?

प्रेमचंद ने गोदान को संक्रमण की पीड़ा का दस्‍तावेज़ बनाया है । इस उपन्यास में होरी ही एकमात्र ऐसा पात्र है जो युग के साथ बदलता नहीं है। यही न बदलना होरी की शख्सियत का अहम पक्ष है ।


गोदान उपन्यास के नायक का नाम क्या है?

गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है।


गोदान की विधा क्या है?

उपन्यास |  गोदान” उपन्यास की रचना मुंशी प्रेमचंद ने सन 1936 में की। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।


होरी के गांव का क्या नाम है?

'गोदान' उपन्यास में बेलारी गाँव के किसान होरी के जीवन संघर्ष का चित्रण भारतीय किसान के संघर्ष को उजागर करता है ।



गोदान उपन्यास में कितने पात्र है?

होरी

भोला

हीरा

शोभा

सोना

रूपा

पंडित ओकार नाथ

श्याम बिहारी तंखा

मिस्टर खन्ना


गोदान उपन्यास के लेखक का नाम क्या है?

गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन १९३६ ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य माना जाता है। इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है।

Thursday, 28 July 2022

रामधारी सिंह दिनकर की परशुराम की उर्वशी पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

 उर्वशी रामधारी सिंह दिनकर



उर्वशी का काव्य रूप क्या है?

उर्वशी प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है। प्रेम और सौन्दर्य की मूल धारा में जीवन दर्शन सम्बन्धी अन्य छोटी-छोटी धाराएँ आकर मिल जाती हैं। प्रेम और सुन्दर का विधान कवि ने बहुत व्यापक धरातल पर किया है। कवि ने प्रेम की छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है। यह एक गीतिनाट्य है।


उर्वशी की भाषा क्या है?

उर्वशी में भाषा की सादगी अलंकृति और आभिजात्य की चमक पहन कर आयी है-शायद यह इस कृति को वस्तु की माँग रही हो।। रामधारी सिंह दिनकर की महत्वपूर्ण कृति है।


उर्वशी का नायक कौन है?

पुरुरवा और उर्वशी अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुरवा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। पुरुरवा के भीतर देवत्व की तृष्णा और उर्वशी सहज निश्चित भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है।पुरुरवाउर्वशी का नायक है।


उर्वशी को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?

उर्वशी रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित काव्य नाटक है। १९६१ ई. में प्रकाशित इस काव्य में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है। अन्य रचनाओं से इतर उर्वशी राष्ट्रवाद और वीर रस प्रधान रचना है।वर्ष 1972 में काव्य रचना उर्वशी के लिये उन्हें ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया।


उर्वशी किसकी पत्नी थी?

पृथ्वी पर आकर उर्वशी ने पुरूरवा से विवाह किया और इनकी नौ संतान हुई। काफी समय बीत जाने के बाद गंधर्वों के मन में उर्वशी को वापस स्वर्ग लाने की इच्छा हुई। गन्धर्वों ने विश्वावसु नामक गंधर्व को उर्वशी के मेष चुराने के लिए भेजा। जिस समय विश्वावसु मेष चुरा रहा था, उस समय पुरूरवा नग्नावस्था में थे।


उर्वशी का मतलब क्या होता है?

उर्वशी (संस्कृत: उर्वशी, रोमनकृत: उर्व) हिंदू धर्म में एक अप्सरा (आकाशीय अप्सरा) है । वह सभी अप्सराओं में सबसे सुंदर और एक विशेषज्ञ नर्तकी मानी जाती हैं। उर्वशी का उल्लेख हिंदू धर्म के कई वैदिक और पुराण शास्त्रों में मिलता है।


उर्वशी में कुल कितने अंक हैं?

उर्वशी में कुल 7 अंक हैं।

Wednesday, 27 July 2022

रामधारी सिंह दिनकर की परशुराम की अर्धनारीश्वर पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

 अर्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर



अर्धनारीश्वर निबंध के रचनाकार कौन है?

अर्धनारीश्वर निबंध के रचनाकार रामधारी सिंह दिनकर जी हैं।


अर्धनारीश्वर उपन्यास किसका है?

अर्द्धनारीश्वर हिन्दी के विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


अर्धनारीश्वर का अर्थ क्या होता है?

अर्धनारीश्वर का अर्थ है आधी स्त्री और आधा पुरुष। भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के आधे हिस्से में पुरुष रुपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति का वास है। भगवान के इस रुप से हमें संकेत दिया जाता है की स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलु हैं और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।


अर्धनारीश्वर गद्य की कौन सी विधा है? 

दिनकर जी द्वारा लिखित अर्धनारीश्वर, निबंध विधा में लिखा गया है। विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित अर्धनारीश्वर उपन्यास है।


अर्धनारीश्वर का सारांश

बुद्ध और महावीर की कृपा से नारियों को भिक्षुणी होने का अधिकार दिया गया, किंतु यह भी उनके हाथ सुरक्षित न रह सका। यह कहा गया कि नारियों का भिक्षुणी होना व्यर्थ है क्योंकि मोक्ष नारी जीवन में नहीं मिल सकता। जब वे पुरुष होकर जन्मेंगी, सन्यास भी तभी ले सकेंगी और तभी उन्हें मुक्ति मिलेगी।

Monday, 25 July 2022

रामधारी सिंह दिनकर की परशुराम की कुरुक्षेत्र पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

कुरुक्षेत्र रामधारी सिंह दिनकर

कुरुक्षेत्र रामधारी सिंह दिनकर


कुरुक्षेत्र का काव्य रूप क्या है?

कुरुक्षेत्र' एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंतर्द्वंद के फल स्वरुप हुआ। कुरुक्षेत्र की 'कथावस्तु' का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है। 'दिनकर' के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु सात सर्गो में विभक्त है।


कुरुक्षेत्र काव्य के कौन पात्र ने युद्ध की अनिवार्य बताया है?

भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध को अनिवार्य बताया है । मनुष्य का धर्म है, कर्म करते रहना। इसी की व्याख्या दिनकर ‘कुरुक्षेत्र’ में करते हैं। शत्रुपक्ष में सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन मोह में पड़ जाता है। वह अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है। तब शत्रु शत्रु होता है, फिर वह गुरु हो, भाई हो अथवा और कोई। उसके विरुद्ध हथियार उठाना हमारा आद्य कर्तव्य है। इस प्रकार का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया। कर्म पहले। 


कुरुक्षेत्र के कवि का क्या नाम है?

कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध लेखक, निबन्धकार और कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित विचारात्मक काव्य है, यद्यपि इसकी प्रबन्धात्मकता पर प्रश्न उठाये जा सकते हैं, लेकिन यह मानवतावाद के विस्तृत पटल पर लिखा गया आधुनिक काव्य अवश्य है। युद्ध की समस्या मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ है। युद्ध निन्दित और क्रूर कर्म है, किन्तु उसका दायित्व किस पर होना चाहिए? जो अनीतियों का जाल बिछाकर प्रतिकार को आमंत्रण देता है, उस पर? या उस पर, जो जाल को छिन्न-भिन्न कर देने के लिए आतुर रहता है? दिनकर जी के 'कुरुक्षेत्र' में ऐसी ही कुछ बातें हैं, जिन पर सोचते-सोचते यह काव्य पूरा हो गया है।


कुरुक्षेत्र का प्रतिपाद्य क्या है?

'कुरुक्षेत्र' का प्रतिपाद्य यही है कि मनुष्य क्षुद्र स्वार्थों को छोड़कर, बुद्धि और हृदय में समन्वय स्थापित करे तथा प्राणपण से मानवता के उत्थान में जुट जाए। दिनकर जी ने कर्म के महत्त्व को कैसे प्रभावात्मक ढंग से प्रतिपादित किया है । युद्ध निंदित एवं क्रूर कर्म है, परन्तु उसका दायित्व किस पर होना चाहिए।


कुरुक्षेत्र साहित्य की कौन सी विधा है?

कुरुक्षेत्र' रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित विचारात्मक काव्य है। इसमें युद्ध से सम्बन्धित कुछ ऐसी बातें हैं, जिन पर सोचते-सोचते यह काव्य पूरा हुआ है।


कुरुक्षेत्र के प्रथम सर्ग का प्रतिपाद्य क्या है?

नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। 

फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से।

अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़ना उसे पड़ता मगर।


कुरुक्षेत्र में कौन सा रस प्रधान है?

कुरूक्षेत्र समन्यवय विचार धारा का काव्य है। परंतु इसमें वीर रस की प्रधानता है। दिनकर जी का मुख्य रस भी वीर रस है।


कुरुक्षेत्र की रचना कब हुई?

रामधारी सिंह दिनकर जी ने कुरुक्षेत्र की रचना 1946 ई में की थी।

 

कुरुक्षेत्र और पथिक के रचयिता कौन हैं?

कुरुक्षेत्र' के रचयिता के नाम है रामधारी सिंह दिनकर , पाथिक' के रचयिता के नाम है रामनरेश त्रिपाठी।


कुरुक्षेत्र काव्य कितने वर्गों में बंटा है?

कुरुक्षेत्र काव्य को कुल 7 वर्गों में बांटा गया है ।

Saturday, 23 July 2022

रामधारी सिंह दिनकर की परशुराम की प्रतीक्षा पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

परशुराम की प्रतीक्षा रामधारी सिंह दिनकर

परशुराम की प्रतीक्षा रामधारी सिंह दिन



परशुराम की प्रतीक्षा कविता का अर्थ

परशुराम की प्रतीक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित खंडकाव्य की पुस्तक है। इस खंडकाव्य की रचना का काल 1962-63 के आसपास का है, जब चीनी आक्रमण के फलस्वरूप भारत को जिस पराजय का सामना करना पड़ा, उससे राष्ट्रकवि दिनकर अत्यंत व्यथित हुये और इस खंडकाव्य की रचना की।


परशुराम की प्रतीक्षा रामधारी सिंह दिनकर जी की सुप्रसिद्ध काव्यकृति है। कवि का स्वाभिमान सौभाग्य पौरुष से मिलकर नए भावी व्यक्ति की प्रतीक्षा में रत दिखाई देता है। सतत् जागरूकता परिस्थितियों के संदर्भ में समकालीनता एवं व्यवहारिक चिंतन एक कवि लिए आवश्यक है। प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी। कवि कहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सतत जागरूक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शुत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है।


परशुराम की प्रतीक्षा कविता का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रस्तुत कविता में परशुराम धर्म अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। कवि की सोच उसके विश्वास का साथ देती हुई यही निष्कर्ष निकालती है।

वे पीयें शीत तुम आतम घाम पियो रे ।

वे जपें नाम तुम बनकर राम जी ओ रे।।

20 अक्टूबर 1962 को भारत पर चीन ने आक्रमण कर दिया इससे पूर्व चीन भारत से मित्रता का स्वांग करता रहा। यह आक्रमण भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमांत क्षेत्र लद्दाख पर किया और दूसरी तरफ उत्तरी पूर्वी सीमांत क्षेत्र नेफा पर तैयारी ना होने के कारण भारत हारा।


परशुराम की प्रतीक्षा किसकी रचना है

परशुराम की प्रतीक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित खंडकाव्य की पुस्तक है। इस खंडकाव्य की रचना का काल 1962-63 के आसपास का है, जब चीनी आक्रमण के फलस्वरूप भारत को जिस पराजय का सामना करना पड़ा, उससे राष्ट्रकवि दिनकर अत्यंत व्यथित हुये और इस खंडकाव्य की रचना की।


परशुराम की प्रतीक्षा कविता का भावार्थ

प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी। कवि कहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सतत जागरुक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है।


परशुराम की प्रतीक्षा का केंद्रीय भाव

प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी। कवि कहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सतत जागरुक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है।


परशुराम की प्रतीक्षा कविता का सारांश

परशुराम की प्रतीक्षा दिनकर जी की सुप्रसिद्ध काव्यकृति है। कवि का स्वाभिमान सौभाग्य पौरुष से मिलकर नए भावी व्यक्ति की प्रतीक्षा में रत दिखाई देता है। सतत् जागरूकता परिस्थितियों के संदर्भ में समकालीनता एवं व्यवहारिक चिंतन एक कवि लिए आवश्यक है। प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी। कवि कहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सतत जागरूक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शुत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है


परशुराम की प्रतीक्षा के लेखक

परशुराम की प्रतीक्षा सामाजिक विषय पर आधारित रामधारी सिंह 'दिनकर' जी द्वारा रचित कविता संग्रह और खंडकाव्य की पुस्तक है।


परशुराम की प्रतीक्षा के लेखक कौन हैं

परशुराम की प्रतीक्षा सामाजिक विषय पर आधारित रामधारी सिंह 'दिनकर' जी द्वारा रचित कविता संग्रह और खंडकाव्य की पुस्तक है।


परशुराम की प्रतीक्षा के रचनाकार

परशुराम की प्रतीक्षा सामाजिक विषय पर आधारित रामधारी सिंह 'दिनकर' जी द्वारा रचित कविता संग्रह और खंडकाव्य की पुस्तक है।


परशुराम की प्रतीक्षा का सारांश

परशुराम की प्रतीक्षा दिनकर जी की सुप्रसिद्ध काव्यकृति है। कवि का स्वाभिमान सौभाग्य पौरुष से मिलकर नए भावी व्यक्ति की प्रतीक्षा में रत दिखाई देता है। सतत् जागरूकता परिस्थितियों के संदर्भ में समकालीनता एवं व्यवहारिक चिंतन एक कवि लिए आवश्यक है। प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी। कवि कहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सतत जागरूक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शुत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है।


परशुराम की प्रतीक्षा किस विधा की रचना है

परशुराम की प्रतीक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित खंडकाव्य की पुस्तक है। इस खंडकाव्य की रचना का काल 1962-63 के आसपास का है, जब चीनी आक्रमण के फलस्वरूप भारत को जिस पराजय का सामना करना पड़ा, उससे राष्ट्रकवि दिनकर अत्यंत व्यथित हुये और इस खंडकाव्य की रचना की।


परशुराम की प्रतीक्षा किसकी कृति है

परशुराम की प्रतीक्षा सामाजिक विषय पर आधारित रामधारी सिंह 'दिनकर' जी द्वारा रचित कविता संग्रह और खंडकाव्य की पुस्तक है।