कुरुक्षेत्र रामधारी सिंह दिनकर
कुरुक्षेत्र का काव्य रूप क्या है?
कुरुक्षेत्र' एक प्रबंध काव्य है। इसका प्रणयन अहिंसा और हिंसा के बीच अंतर्द्वंद के फल स्वरुप हुआ। कुरुक्षेत्र की 'कथावस्तु' का आधार महाभारत के युद्ध की घटना है, जिसमें वर्तमान युग की ज्वलंत युद्ध समस्या का उल्लंघन है। 'दिनकर' के कुरुक्षेत्र प्रबंध काव्य की कथावस्तु सात सर्गो में विभक्त है।
कुरुक्षेत्र काव्य के कौन पात्र ने युद्ध की अनिवार्य बताया है?
भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध को अनिवार्य बताया है । मनुष्य का धर्म है, कर्म करते रहना। इसी की व्याख्या दिनकर ‘कुरुक्षेत्र’ में करते हैं। शत्रुपक्ष में सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन मोह में पड़ जाता है। वह अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है। तब शत्रु शत्रु होता है, फिर वह गुरु हो, भाई हो अथवा और कोई। उसके विरुद्ध हथियार उठाना हमारा आद्य कर्तव्य है। इस प्रकार का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया। कर्म पहले।
कुरुक्षेत्र के कवि का क्या नाम है?
कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध लेखक, निबन्धकार और कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित विचारात्मक काव्य है, यद्यपि इसकी प्रबन्धात्मकता पर प्रश्न उठाये जा सकते हैं, लेकिन यह मानवतावाद के विस्तृत पटल पर लिखा गया आधुनिक काव्य अवश्य है। युद्ध की समस्या मनुष्य की सारी समस्याओं की जड़ है। युद्ध निन्दित और क्रूर कर्म है, किन्तु उसका दायित्व किस पर होना चाहिए? जो अनीतियों का जाल बिछाकर प्रतिकार को आमंत्रण देता है, उस पर? या उस पर, जो जाल को छिन्न-भिन्न कर देने के लिए आतुर रहता है? दिनकर जी के 'कुरुक्षेत्र' में ऐसी ही कुछ बातें हैं, जिन पर सोचते-सोचते यह काव्य पूरा हो गया है।
कुरुक्षेत्र का प्रतिपाद्य क्या है?
'कुरुक्षेत्र' का प्रतिपाद्य यही है कि मनुष्य क्षुद्र स्वार्थों को छोड़कर, बुद्धि और हृदय में समन्वय स्थापित करे तथा प्राणपण से मानवता के उत्थान में जुट जाए। दिनकर जी ने कर्म के महत्त्व को कैसे प्रभावात्मक ढंग से प्रतिपादित किया है । युद्ध निंदित एवं क्रूर कर्म है, परन्तु उसका दायित्व किस पर होना चाहिए।
कुरुक्षेत्र साहित्य की कौन सी विधा है?
कुरुक्षेत्र' रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित विचारात्मक काव्य है। इसमें युद्ध से सम्बन्धित कुछ ऐसी बातें हैं, जिन पर सोचते-सोचते यह काव्य पूरा हुआ है।
कुरुक्षेत्र के प्रथम सर्ग का प्रतिपाद्य क्या है?
नायकों के पेट में जठराग्नि-सी।
फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से।
अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़ना उसे पड़ता मगर।
कुरुक्षेत्र में कौन सा रस प्रधान है?
कुरूक्षेत्र समन्यवय विचार धारा का काव्य है। परंतु इसमें वीर रस की प्रधानता है। दिनकर जी का मुख्य रस भी वीर रस है।
कुरुक्षेत्र की रचना कब हुई?
रामधारी सिंह दिनकर जी ने कुरुक्षेत्र की रचना 1946 ई में की थी।
कुरुक्षेत्र और पथिक के रचयिता कौन हैं?
कुरुक्षेत्र' के रचयिता के नाम है रामधारी सिंह दिनकर , पाथिक' के रचयिता के नाम है रामनरेश त्रिपाठी।
कुरुक्षेत्र काव्य कितने वर्गों में बंटा है?
कुरुक्षेत्र काव्य को कुल 7 वर्गों में बांटा गया है ।
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