Thursday, 21 July 2022

रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

  

रश्मिरथी पुस्तक के लेखक कौन हैं?

रश्मिरथी पुस्तक के लेखक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी हैं जिसमें उन्होंने कर्ण का सजीव चित्रण किया है।

रश्मिरथी रामधारी सिंह दिनकर



रश्मिरथी में कितने सर्ग है?

रश्मिरथी दिनकर जी का सर्वाधिक चर्चित और विवादास्पद खण्ड काव्य है जिसमे कुल 07 सर्ग हैं। इसमे कर्ण को एक नायक के तौर पर प्रस्तुत किया गया है ।


रश्मिरथी का मूल उद्देश्य क्या है?

रश्मिरथी’ का प्रयोजन या उद्देश्य तो सूर्य के प्रकाश या चांद की चादनी या फूलों की ख़ुश्बू या धन्वा की टंकार के समान इस काव्य के नायक महारथी महादानी कर्ण के शील संदेश और आदर्श में सन्निहित है। काव्य के चतुर्थ सर्ग में देवराज इन्द्र के संदर्भ में कर्ण ने जो अपने संदेश और आदर्श की व्याख्या की है, वही वस्तुतः इस काव्य का उद्देश्य या प्रयोजन की रीढ़ की हड्डी है।

फिर कहता हूं नहीं व्यर्थ राधेय यहां आया है,

एक नया संदेश विश्व के हित वह भी लाया है।

मैं उनका आदर्श कहीं जो व्यथा न खोल सकेंगे,

पूछेगा जग किन्तु पिता का नाम न बोल सकेंगे।

जिनका निखिल विश्व में, कोई कहीं न अपना होगा,

मन में उमंग लिए चिरकाल कल्पना होगा।


वस्तुतः यही वह मूल प्रयोजन है जो इस पौराणिक काव्य की आधुनिक युग जीवन को गौरव और अर्थकत्ता प्रदान करता है। साथ ही आर्थिक विषमता, रंगभेद, नीति, जाति, कुल सम्प्रदाय एवं साम्राज्यवाद से पीड़ित विश्व-मानव से रिश्ता जोड़ता है।


‘रश्मिरथी’ एक ऐसी रचना है जिसके पौरुष में पुनीत अनल में जातिवाद, संप्रदायवाद जलकर खाक हो जाते हैं। यह काव्य दैववाद के प्रत्याख्यान की जगह मानवतावाद की स्थापना का पुण्य प्रयास है, नियतिवाद का विरोध और कर्मवाद का जयघोष है। मानवीय उद्यम के द्वारा पृथ्वी पर स्वर्ग उतारने की सफल साधना है। इस स्वार्थपूर्ण सृष्टि से आत्मदान का शंखनाद एवं मानव की उच्चाभिलाषा एवं कर्म का दर्प-स्फीत जयगान है।


विप्र वेशधारी छली देवराज इन्द्र को कवच-कुंडल दान के पूर्व महादानी कर्ण ने अपनी करूण जीवन गाथा का वर्णन करते हुए विश्व को एक नया संदेश और आदर्श प्रदान किया है। जीवन जय के लिए कर्ण ने शूरधर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा है –

“कि शूर जो चाहे कर सकता है,

और नियति भाल पर पुरुष पांव निज धर सकता है।”

मानवशक्ति का निवास स्थान, वंश या कुल नहीं अपितु वीर पुरुषों का पृथुल वक्ष है। इस काव्य में उन्होंने संदेश दिया है कि चाहे धर्म धोखा दे या पुण्य ज्वाला बन जाए, लेकिन “मनुष्य तब भी न कभी सुपथ से टल सकता है।” विजय मानव का लक्ष्य है। लेकिन विजय तिलक लिए कुपथ पर चलना पाप है।


इस प्रकार ‘रश्मिरथी’ मानवतावाद की स्थापना पर ज़ोर देते हुए भाग्यवाद की जगह कर्मवाद का शंखनाद है। देवराज इन्द्र को चुनौती देते हुए कर्ण ने कहा है,


विधि ने था क्या लिखा भाग्य में यह खूब जानता हूं मैं,

बाहों को कहीं भाग्य से बलि मानता हूं मैं,

महाराज, उद्यम से विधि का अंक उलट जाता है,

किस्मत का पासा पौरूष से हार पलट जाता है।

‘रश्मिरथी’ समता और मानवता के धरातल पर खड़ा महाकवि ‘दिनकर’ का युगधर्मी शंखनाद है जिसकी गूंज से विषमताओं और रूढ़ियों की बेड़ियां खुल जाती हैं और वसुंधरा पर कर्ण के सपनों के अनुसार एक नए समाज के सूर्योदय की संभावना बढ़ जाती है।


रश्मिरथी के प्रथम सर्ग का आरंभ क्या है?

प्रथम सर्ग

'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,

जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।

किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,

सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,

दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।

क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,

सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,

पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।


इन पंक्तियों के साथ रश्मिरथी का प्रथम सर्ग की शुरुआत है जिसमे वीर पुरुष की विशेषताएं बताईं गयी हैं।



रश्मिरथी के मुख्य चरित्र कौन है?

रश्मिरथी, जिसका अर्थ "सूर्यकिरण रूपी रथ का सवार" है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। इसमें 7 सर्ग हैं। इसमें कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का सजीव चित्रण किया गया है।


रश्मिरथी काव्य में रश्मि का अर्थ क्या है?

रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अथार्त सूर्य की किरणों का हो। 'रश्मिरथी' महाकाव्य काव्य में रश्मिरथी कर्ण का नाम है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है। कर्ण महाभारत महाकाव्य का अत्यंत यशस्वी पात्र है।



रश्मिरथी का जन्म कब हुआ था?

रश्मिरथी, जिसका अर्थ "सूर्यकिरण रूपी रथ का सवार" है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह 1952 में प्रकाशित हुआ था। इसमें 7 सर्ग हैं।

रामधारी सिंह दिनकर की रश्मिरथी पुस्तक शब्द (shabd.in) पर उपलबब्ध है

0 comments:

Post a Comment